व्यंग्य: धैर्य की पाठशाला

-सुदर्शन कुमार सोनी-

आजकल के समय का सबसे बडा संकट सहनशीलता व धैर्य की कमी होना है। चंहु ओर इसका अभाव दिखता है, हर आदमी जल्दीबाजी के ताव में है और धैर्य व सहनशीलता को कोई भाव देता ही नहीं है। ट्रैफिक इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, जरा सा जाम लगा कि पीछे वाले ने दस बार हार्न बजाकर आगे वाले को वार्न करने का काम ले लिया। बगैर यह जाने हुये कि आगे जरा माजरा क्या है, जो कि आगे के वाहनों के पहिये थम गये है। रेल्वे के टिकट कांऊटर पर भी धक्का मुक्की चलती रहती है। किसी को धैर्य नहीं है, यदि कोई सीधे खिड़की पर कुछ पूछने भी आ गया या कि अपने बचे हुये पैसे लेने आ जाये तो पूरी लाईन समवेत स्वर में प्रतिकार करती है कि कैसे लाईन तोड़ कर आ गये हो हम सारे मूर्ख है क्या? धैर्य कहीं नहीं है क्या करे ये इस समय की धारा है कि सहनशीलता गायब होती जा रही है। अधैर्य तो इतना ज्यादा है कि यदि पानीपुरी की दुकान पर पानी पुरी मिलने में देरी हो जाये तो आदमी हंगामा खड़ा कर देता है, ट्रेन में एसी बंद होने पर हंगामा बरपा जाता है चाहे मशीनी खराबी ही क्यों न हो? वैसे पानी पुरी वाले को तो उल्टे तरह की सहनशीलता नहीं है! देरी की वह तो सामने वाला मुंह में गोलगप्पे को डाल ही न पाये और अगला पेश कर देता है कि खाने वाले का मुंह फूला का फूला रह जाता है! मुंह की सबसे अच्छी एक्सरसाईज पानी पुरी खाते समय ही होती है! गंगू की एक नेक सलाह अनेक जन को है। वह खुद भी इस समस्या से दो चार दो चार साल से हो रहा था लेकिन कोई हल नहीं दीख पड़ता था कि फिर एक आयडिया कहीं से किसी ने दिया! दिया क्या पड़ोस में एक कुतिया ने चार बच्चों को जना तो एक कुतिया मालिक ने रखा व बाकी तीन सुधि पड़ोसियों ने बांट लिये। गंगू ने जिंदगी में पहली बार श्वान पालन किया था तो तरह तरह के खट्टे मीठे अनुभव उसे हुये। और यहीं से धैर्य की पाठशाला का शुभारम्भ हो गया। पपी जी को कुछ खाना खिलाओ तो कभी तो वे खा ले और कभी उनका मिजाज बिगडा हो या कि गड़बड़ हो तो वे कुछ भी न खाये और पूरे घर में चिंता की लहर व्याप्त हो जाये। बाद में उनके पास बैठ कर कई तरह की मिन्नतें करने पर वे पसीजते और एक दो दाने मुंह में मुश्किल से डालते। खाना खाना सीखना हो तो एैसे नखरैल डॉगी से सीखो एैसे धीरे-धीरे खाता है कि घंटाभर यों ही निकल जाये मनाते मनाते। एक बार की मान-मनौव्वल में वे एक दाना या दो मुश्किल से मुंह में डालते थे बस यहीं से धैर्य की अग्निपरीक्षा शुरू हो गयी, आप सब काम छोड़कर बैठे रहो। अब घंटे भर में इन्होंने भोजन डकारा तो फिर आपको चिंता हुयी कि रात भर के बाद अब सुबह इनको हल्का करवाना जरूरी है, लेकिन यहां भी इनकी मनमर्जी चलती है केवल इंसान भर का हाजमा कौन खराब होता है, इनका भी चाहे जब हो जाता है, कभी कब्जियत है, तो कभी उनकी तबीयत नहीं है, हल्का होने की। आप को वह चक्कर पे चक्कर लगवा रहा है, और आप चक्कर खाने ही वाले हैं, लेकिन वे नहीं पसीज रहे है, आप पसीना सर्दी में पोंछ रहे है आपकी कमीज गीली हो गयी है कि भाई साहब हल्के हो जाये नहीं तो आंगन में फिर गड़बड़ करेंगे आपके दफ्तर जाने के बाद। तो एैसे ठोस तरीके से धैर्य का गुण आपके अवचेतन में घर कर जाता है। और आप धीरे-धीरे धैर्यवान बन जाते हो और कोई पर्सनालटी विकास की क्लास आपको यह न ही सिखा सकती है जो कि एक डॉगी आपको सिखा सकता है। आगे और भी है डॉगी द्वारा सिखाये गये धैर्य के मंत्र। इन्होंने आपके घर की कोई चीज अचानक मुंह में दबा ली चाहे वह हैंगर हो, बाटल हो या आपका मौजा या कि एकमात्र सूखी गंजी हो और बरसात में बाकी सूखी नहीं है, आपका मुंह सूख रहा है, लेकिन वे इसे छोड़ नहीं रहे है, आप मिन्नते कर रहे हैं। लेकिन इन पर इसका असर हो नहीं रहा है। आपको वह धैर्य का पाठ पढा रहा है जो कि आपने इतनी पढाई करने के बाद नहीं पढ़ा है। अतः सिद्व हुआ कि डॉगी पालन धैर्य की पाठशाला है।

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